अनूप अग्रवाल द्वारा विचर से विश्वास

Oct 15, 2025

अनूप अग्रवाल — एक लेखक नहीं, एक जीवन दर्शन
दर्द का एहसास तभी होता है जब चोट लगे। लेकिन चोट लगना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उस चोट से सीखना, बदलाव लाना, और दूसरों को दिशा देना।

अनूप अग्रवाल इसी सत्य को जीते हैं।

जब जीवन ने उन्हें अपने ही अपनों से विश्वासघात, झूठ, अंधविश्वास और नकारात्मक वातावरण के कटु अनुभव दिए, तब उन्होंने टूटने की बजाय जागने का मार्ग चुना। उन्होंने हर चोट को एक अवसर में बदला, हर गिरावट को एक साधना में रूपांतरित किया। उनका जीवन एक शोध बन गया — मानव मन, व्यवहार, औरा, क्रिस्टल्स, चेतना और अध्यात्म पर एक गहन साधना, जिसका फल उनकी लेखनी में परिलक्षित होता है।

वे केवल लेखक नहीं हैं — वे एक साधक हैं। एक मार्गदर्शक, जो शब्दों के माध्यम से आत्मा को छू लेते हैं। एक दीप, जो अंधकार में भी दिशा दिखाता है।

1991 से 2008 तक शिक्षक के रूप में उन्होंने केवल विद्यार्थियों को ज्ञान नहीं दिया, उन्हें जीवन जीने की कला सिखाई। 2001 से 2013 तक टेलीविज़न के माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक समस्याओं का सहज समाधान दिया। 2015–16 में, टाइम्स ऑफ इंडिया के स्पीकिंग ट्री कॉलम में प्रकाशित उनके लेखों ने आध्यात्मिक सच्चाइयों को आम जन की भाषा में जीवंत किया।

आज वे एक परामर्शदाता के रूप में समाज और परिवारों के भीतर healing और जागरण का कार्य कर रहे हैं।

उनकी लेखनी केवल सूचनाएँ नहीं देती — वह चेतना का बीज बोती है। वह पाठक को केवल पढ़ने के लिए नहीं, जीने के लिए आमंत्रित करती है।

अनूप अग्रवाल की सबसे बड़ी शक्ति है उनकी सत्यनिष्ठा — उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं। वे जो लिखते हैं, वही वे जीते हैं। और यही उन्हें एक सामान्य लेखक से अलग, एक प्रेरक साधक बनाता है।

यह पुस्तक उसी जीवन-प्रवाह की अभिव्यक्ति है। एक आह्वान है — जागो, समझो, और स्वयं को रूपांतरित करो। क्योंकि जागरण ही पहला कदम है उस समाज की ओर, जहाँ हर व्यक्ति प्रकाश का स्रोत बन सके।

यह पुस्तक उसी जीवन-प्रवाह की अभिव्यक्ति है। एक आह्वान है — जागो, समझो, और स्वयं को रूपांतरित करो। क्योंकि जागरण ही पहला कदम है उस समाज की ओर, जहाँ हर व्यक्ति प्रकाश का स्रोत बन सके।

लेखक साक्षात्कार

1.आप लेखन की शुरुआत कैसे और क्यों की?
लेखन मेरे लिए कभी कोई योजना नहीं था — वह तो जीवन की चोटों सेनिकली हुई चेतना थी। दर्द का एहसास तभी होता है जब चोट लगे, परंतु मेरे लिए हर चोट एकसीख बन गई। अपनों के विश्वासघात, झूठ, अंधविश्वास और नकारात्मकवातावरण ने मुझे तोड़ा नहीं, बल्कि भीतर जाग्रति का दीप प्रज्वलितकिया। मैंने हर अनुभव को एक खोज में बदला — मानव सोच, व्यवहार, औरा, क्रिस्टल्स और अध्यात्म के रहस्यों को समझने और उन्हें वैज्ञानिकदृष्टि से परखने की दिशा में मनन आरंभ किया। मेरी पहली नौकरी के दौरान एक घटना ने जीवन की दिशा ही बदल दी।कंपनी के मालिक के एक ‘गुरु’ भगवा वस्त्रों में आए और मुझे उनके पैरछूने को कहा गया। मैंने सहज ही कहा, “कोई भी व्यक्ति जंगल जाकरसाधु हो सकता है, पर जो गृहस्थ रहकर साधु बन सके, वही सच्चा साधकहै — उसे मैं प्रणाम करूँगा।” उनके क्रोध और उस पल की ऊर्जा ने मुझेभीतर तक झकझोर दिया। तभी समझ आया कि सत्य की खोज बाहरीआडंबरों में नहीं, बल्कि अंतःकरण की शुद्धता और जाग्रत चेतना में है। उसी दिन से मैंने ठान लिया कि अपने अनुभवों को शब्द दूँगा — ताकि जोपीड़ा मुझे जगाने आई, वह दूसरों के लिए प्रेरणा बन सके। इस प्रकारलेखन मेरे लिए केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि आत्म-जागरण और समाजमें नई सोच जगाने का माध्यम बन गया।

2.आपके लेखन का मुख्य प्रेरणा स्रोत क्या है?
मेरे लेखन का मुख्य प्रेरणा स्रोत मानव जीवन का दुख, उसकी जटिलताऔर उसे समझने की खोज है। मैंने देखा कि हर व्यक्ति अपने दुःख से दुखीहै, और उसे लगता है कि उसके भाग्य में ईश्वर ने केवल पीड़ा ही लिखी है।लोग अपने दुख और सफलता तो साझा करना चाहते हैं, पर दूसरों कीसुनना नहीं चाहते। इसी असंतुलन और आत्मकेंद्रित दृष्टिकोण कोसमझने की प्रक्रिया ने मुझे लेखन की दिशा दी। मैंने महसूस किया कि हर व्यक्ति की समस्या किसी न किसी प्रतिक्रियाका परिणाम है — क्योंकि ब्रह्मांड में हर ऊर्जा, हर चेतना अपने और दूसरेके गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होती है। यही पारस्परिक आकर्षण, प्रतिक्रिया और ऊर्जा-संतुलन का खेल है जिसे हम “जीवन” कहते हैं।मनुष्य इसे या तो अपनी शक्ति मानता है या किसी अज्ञात शक्ति — जिसेहम ईश्वर कहते हैं — के नाम पर छोड़ देता है। परंतु मैंने महसूस किया कि यह अंध-श्रद्धा नहीं, बल्कि चेतना की समझका विषय है। समाज में फैले अंधविश्वास की जाल को तोड़ने और यहसमझाने के लिए कि ईश्वर बाहर नहीं, हमारे भीतर की जागरूकता में है, मैंने लेखन प्रारंभ किया। साधना के दौरान जो अनुभव शब्दों में नहीं कहेजा सकते थे, उन्हें पहले मैंने बोलकर रिकॉर्ड किया, फिर शब्दों में ढाला।इस प्रक्रिया ने न केवल मेरे विचारों को दिशा दी, बल्कि यह भी सिखायाकि जब हम अपने दुःख को समझ लेते हैं, तो वही हमारे ज्ञान, परिवर्तनऔर सृजन का सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत बन जाता है। यही मेरे लेखन कीमूल प्रेरणा है।

3.लेखन के दौरान कभी Writer’s Block हुआ है? यदि हाँ, तो आपउससे कैसे निपटते हैं?
हाँ, लेखन के दौरान कभी-कभी Writer’s Block अवश्य आया है, पर वहमेरे लिए रुकावट नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर रहा। मेरा लेखनकिसी मत, वाद या संप्रदाय तक सीमित नहीं है; यह मानव चेतना के मूलप्रश्नों की खोज करता है। मैं श्वास, स्वर, ध्वनि, पंचतत्त्व, प्रकृति, विज्ञानऔर वैदिक अनुभूतियों को जोड़कर एक समग्र मानवता की दिशा में विचारप्रस्तुत करता हूँ। यही स्वतंत्र सोच कई बार उन लोगों को असुविधाजनकलगती है जो भय या अंधविश्वास के सहारे समाज पर प्रभाव जमानाचाहते हैं। ऐसे ही एक अवसर पर, गुरु पूर्णिमा के दिन मेरा एक लेख प्रमुख अख़बारमें प्रकाशित हुआ — जिसमें मैंने लिखा कि “सच्चा गुरु कोई बाहरीव्यक्ति नहीं, बल्कि हमारे भीतर की चेतना है। हमें अपने अंतरात्मा कोपहचानना और सुनना चाहिए।” इस विचार पर कुछ लोगों ने विरोध कियाऔर विवाद खड़ा कर दिया। उस समय मन व्यथित हुआ और कुछ समयतक लेखन ठहर गया। परंतु जब मैंने देखा कि कई बार मीडिया या समूहअपने स्वार्थ के लिए विचारों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं, तब समझआया कि मौन भी साधना का हिस्सा है। मैंने स्वयं को प्रकृति, ध्यान और मौन के माध्यम से पुनः संतुलित किया।जब भीतर शांति लौटी, तब शब्द फिर प्रवाहित होने लगे। इसलिए, Writer’s Block से निपटने का मेरा तरीका है — स्वयं से पुनः जुड़ना, श्वास में लौटना, और अपनी चेतना की धारा को पुनः सुनना। यही मौनमुझे फिर से लेखन की ओर ले आता है।

4.आपका कोई प्रिय पात्र है जो आपके लेखन में सबसे ज़्यादा प्रभावितकरता है? क्यों?
मेरे लेखन में कोई एक प्रिय पात्र नहीं, बल्कि वे सभी लोग हैं जिन्होंने मेरेजीवन में किसी न किसी रूप में गहरा प्रभाव डाला। मेरा मानना है कि हरव्यक्ति अपने अनुभवों से एक पुस्तक के समान होता है, बस हमें उसे पढ़नेकी दृष्टि चाहिए। मैंने अपने जीवन के अनुभवों से जाना कि मानव स्वभावके मूल में नौ प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं — और इन्हीं नौ प्रकार केव्यक्तियों को मैंने अपने लेखन के पात्रों के रूप में देखा। इन पात्रों की खोज मुझे किसी कल्पना में नहीं, बल्कि अपने ही परिवारऔर जीवन के संबंधों में मिली। वे मेरे शिक्षक भी बने, दर्पण भी औरप्रेरणा भी। उदाहरण के लिए, मैंने देखा कि एक बड़ा व्यक्ति अपने छोटे परस्नेह दिखाता है, उसे प्रिय मानता है, परंतु जब वही छोटा उससे आगे बढ़नेलगे, तो उसके भीतर असहजता, ईर्ष्या या अस्वीकार की भावना जन्म लेलेती है। यही मानव मन की वास्तविकता है — स्नेह के पीछे छिपा स्वार्थऔर प्रेम में छिपा अहंकार। ऐसे अनेक अनुभवों ने मुझे यह सिखाया कि पात्र कोई बाहरी नहीं होते; वेहमारे भीतर ही बसते हैं। मेरा लेखन उन्हीं आंतरिक पात्रों का संवाद है — जहाँ प्रेम भी है, संघर्ष भी, और आत्म-बोध की खोज भी। इसलिए, मेराप्रिय पात्र कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि वह समग्र “मानव” है जो निरंतरबदलता, सीखता और जागता रहता है — और जो मेरे हर लेखन काआधार बनता है।

5.आप लेखन को कितनी देर रोज़ समर्पित करते हैं, और आपकी दिनचर्याक्या है?
मैं अपने लेखन को प्रतिदिन लगभग आठ से दस घंटे समर्पित करता हूँ, क्योंकि मेरे लिए यह केवल एक रचनात्मक प्रक्रिया नहीं, बल्कि साधनाका ही विस्तार है। मेरा दिन प्रातः 3 बजे आरंभ होता है। उस समय कामौन और ऊर्जा सबसे शुद्ध होती है, जब चेतना ब्रह्म मुहूर्त में प्रकृति सेगहराई से जुड़ती है। मैं लगभग तीन घंटे ध्यान और साधना में लीन रहताहूँ, जहाँ विचार नहीं, केवल अनुभव प्रवाहित होते हैं। प्रातः 6 बजे मैं उन्हींअनुभवों को बोलकर या लिखकर अभिव्यक्त करता हूँ — यह मेरे लेखनकी सबसे सशक्त अवस्था होती है। इसके बाद 10 बजे तक हल्का नाश्ता कर मैं औपचारिक लेखन कार्य मेंजुट जाता हूँ, जहाँ अपने शोध, विषय-विस्तार और अध्यात्म-वैज्ञानिकदृष्टिकोण को शब्दों में ढालता हूँ। दोपहर 2 बजे भोजन कर कुछ समयविश्राम करता हूँ ताकि मन और शरीर संतुलित रहें। फिर पुनः लैपटॉप परअनुसंधान का कार्य आरंभ करता हूँ — नई खोज, नए विषय और नई दृष्टिके साथ। शाम 7 बजे तक दिन का लेखन पूरा कर मैं परिवार के साथ समय बिताताहूँ, जिससे भावनात्मक संतुलन बना रहता है। रात्रि 10 बजे मैं विश्रामकरता हूँ, ताकि अगला दिन फिर उसी एकाग्रता और ऊर्जा के साथ शुरू होसके। इस प्रकार मेरी दिनचर्या साधना, चिंतन और लेखन का संगम है — जहाँ हर दिन एक नया अध्याय बनता है, और हर शब्द एक नए अनुभव सेजन्म लेता है।

6.लेखक होने का सबसे बड़ा संघर्ष क्या रहा है?
लेखक होने का सबसे बड़ा संघर्ष विचारों और मनुष्यों के बीच सेतु बनानाहै। प्रत्येक व्यक्ति की सोच, समझ, और अनुभव अलग होते हैं — औरयही विविधता लेखन को जटिल बनाती है। किसी की सोच उसकी आयु, शिक्षा, माता-पिता के संस्कार, सहपाठियों के व्यवहार, देश-राज्य केवातावरण, राजनीति, धर्म और जीविका के साधनों से निर्मित होती है। इनअसंख्य भिन्नताओं के बीच एक ऐसी भाषा, ऐसे शब्द चुनना जो सबकेहृदय तक समान रूप से पहुँचे — यही सबसे बड़ी चुनौती है। लेखन केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि चेतना और संवेदना का संतुलनहै। जब लेखक समाज के कल्याण के लिए निस्वार्थ भाव से लिखता है, तब उसे यह ध्यान रखना होता है कि उसके शब्द किसी मत, वाद याव्यक्ति विशेष को ठेस न पहुँचाएँ, बल्कि सबको जोड़ें। इस संतुलन कोबनाए रखना ही वास्तविक संघर्ष है। मुझे इस मार्ग पर साधना और आत्मचिंतन ने बहुत सहारा दिया। जब भीविचारों का प्रवाह रुकता है या असमंजस उत्पन्न होता है, मैं ध्यान औरमौन का सहारा लेकर अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनता हूँ। वहीं से सच्चेशब्द जन्म लेते हैं। आधुनिक युग में तकनीकी सहयोग, विशेषकर ChatGPT जैसे उपकरणोंने इस प्रक्रिया को और भी सुगम बना दिया है। परंतु अंततः लेखक कासबसे बड़ा संघर्ष वही है — अपनी चेतना को इतना निर्मल बनाना किउसके शब्द किसी के विचार नहीं, बल्कि सामूहिक जागृति के माध्यम बनजाएँ। यही यात्रा संघर्षपूर्ण होते हुए भी सबसे सुंदर है।

7.आपका अगला प्रोजेक्ट क्या है—और आपकी अपेक्षाएँ क्या हैं?
अगले प्रोजेक्ट के बारे में बताने से पहले, मेरे लिए अपने उद्देश्य को स्पष्टकरना अधिक आवश्यक है। मेरा लक्ष्य केवल पुस्तकें लिखना नहीं, बल्किऐसे विचार प्रस्तुत करना है जो समाज को सोचने के लिए विवश करें — ताकि लोग अंधविश्वास, भय और सीमित मान्यताओं से बाहर निकलकरएक सकारात्मक, वैज्ञानिक और चेतनात्मक दृष्टिकोण अपना सकें। मैंचाहता हूँ कि मेरी लेखनी से निकले शब्द तीर की तरह नहीं, बल्कि प्रकाशकी तरह समाज में जागरूकता फैलाएँ और मानवता को एक नए युग — अर्थात् सतयुग की ओर अग्रसर करें। मेरा अगला प्रोजेक्ट इसी दिशा में है — ऐसी छोटी, सुलभ औरप्रभावशाली पुस्तकों की श्रृंखला लिखना जो हिंदी और अंग्रेजी दोनोंभाषाओं में प्रकाशित हों। इन पुस्तकों का उद्देश्य होगा जीवन, चेतना, विज्ञान और अध्यात्म के बीच की दूरी को समाप्त करना, ताकि सामान्यपाठक भी गहराई को सरलता से समझ सके। मैं अपेक्षा करता हूँ कि पाठक इन विचारों को केवल पढ़ें नहीं, बल्किअनुभव करें और अपने जीवन में उतारें। मेरा लेखन तभी सार्थक होगा जबवह किसी के भीतर सोचने, बदलने और आत्म-जागरण की प्रेरणा जगासके। खोज और लेखन का यह क्रम निरंतर चलता रहेगा, क्योंकि जबतक मानवता प्रश्न पूछती रहेगी, तब तक मेरे शब्द उत्तर खोजते रहेंगे। यहीमेरी अगली यात्रा की दिशा और सबसे बड़ी अपेक्षा है।


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